Ahoi Ashtami 2020: अहोई अष्टमी का व्रत क्यों रख्खा जाता है और क्या है अहोई अष्टमी कथा, जिसे सुनकर मिलता है व्रत फल

धर्म
PUBLISHED: November 7, 2020

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका मेरे चैनल में. दोस्तों अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन महिलाये रखती है. और इस साल यह व्रत 8 नवंबर को रखा जा रहा है. धार्मिक मान्यता के अनुसार ज्यादातर भारत में माताओं के द्वारा संतान की दीर्घायु के लिए अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है. और इस दिन अहोई माता की पूजा सची श्रधा से की जाती है. व्रत करने वाली माताओं को अहोई अष्टमी व्रत कथा को जरूर सुनना चाहिए. जिसके फलस्वरूप उनके संतान की लम्बी आयु होती है, यह व्रत कथा इस प्रकार है.  

क्या और क्यों रख्खा जाता है अष्टमी व्रत और क्या है कथा:

प्राचीन समय में किसी नगर में एक साहूकार रहा करता था और उसके सात लड़के थे. साहूकार की स्त्री दीपावली से पूर्व घर की लीपा -पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और वहा कुदाल से मिट्टी खोदने लगी. और उसी जगह एक सेह की मांद थी. उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को गलती से लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल ही मर गया. 

लेकिन अपने हाथ से हुई ह्त्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत ज्यादा दुःख हुआ लेकिन अब क्या हो सकता था. वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर वापस लौट आई. और कुछ दिनों बाद उसके बेटे का भी निधन हो गया. फिर अचानक दुसरे बेटे का भी निधन हो गया, फिर तीसरा ओर इस प्रकार वर्ष भर में उसके सातों बेटे मर गए थे. महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी.

एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने कभी भी जान-बूझकर कभी कोई पाप नही किया. लेकिन एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अनजाने में उससे एक सेह के बच्चे की ह्त्या हो गई थी. और उसके बाद मेरे सातों पुत्रों की मृत्यु हो गयी. यह सुनकर औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है.  तुम उसी अष्टमी को भगवती पार्वती की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो और क्षमा-याचना करो. ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा. यह सुनकर साहूकार की पत्नी ने उनकी बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना करने लगी. वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी. बाद में उसे सात पुत्रों की प्राप्ति फिर हुई, तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित होने लागी.

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