नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका मेरे चैनल में. दोस्तों जैसा की आप सब जानते है की कार्तिक मास की अमावस्या से 6 दिनों के बाद ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि में ही छठ का पर्व मनाया जाता है. और इस बार छठ का पर्व 20 नवंबर को मनाया जा रहा है. दिवाली के छठे दिन इस पूजा को मनाने के कारण भी इसे छठ पर्व कहा जाता है. यह त्यौहार चार दिनों तक मनाया जाता है. वैसे तो यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन इस व्रत को बिहार में बहुत में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. तो चलिए जानते हैं कौन हैं छठी मईया और छठ पर्व की पौराणिक कथा क्या है.
जानिये कोन है छठ मईया
आप में बहुत से लोग नही जानते होंगे की छठ मईया को सूर्य देव की बहन कहा जाता है. छठ के पर्व में इन्हीं की पूजा अर्चना की जाती है. दोस्तों यह भी माना जाता है कि नवरात्रि में जिस षष्ठी देवी की पूजा की जाती है. मान्यता यह है कि छठ का व्रत करने से छठी मईया संतान को लंबी आयु का वर देती हैं. छठ पर्व में विशेषतौर पर सूर्य और जल को साक्षी मानकर पूजा की जाती है. जीवन में जल और सूर्य की महत्ता के कारण छठ पर्व पर नदी, सरोवर आदि के किनारे सूर्य देव की आराधना करते हैं. इस व्रत को करने से संतान दीर्घायु होती है. संतान प्राप्ति के लिए भी यह छट का व्रत किया जाता है.
जानिये छठ व्रत कथा क्या है. और क्यों छठ मईया की पूजा की जाती है.
पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा हुआ करते थे और उनकी पत्नी मालिनी के कोई संतान नहीं थी. और इस बात को लेकर राजा और उसकी पत्नी बहुत ज्यादा दुखी रहने लगे थे. संतान प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया थे. इस यज्ञ के करवाने से रानी गर्भवती ने गर्भ धारण कर लिया थे.
लेकिन जब नौ माह के पश्चात जब संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को एक मरा हुआ पुत्र पैदा हुआ. इस बात का पता चलने पर राजा को अत्यधिक दुख हुआ. और दुख और शोक के कारण राजा ने आत्म हत्या करने का मन बना लिया था. लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने का प्रयास ही किया था तो उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हो गई थी.
देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं. और मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. इसके अलावा जो बी व्यक्ति सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है तो मैं उसके सभी प्रकार के मनोकामनाए को पूर्ण कर देती हूं. यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी.
देवी की आज्ञानुसार राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा करनी शुरू कर दी. पूजा से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें संतान प्राप्ति का वर दिया जिसके फलस्वरुप राजा और उनकी पत्नी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. और कहते हैं कि तभी से षष्ठी (छठी) तिथि को छठ पर्व पर छठ मईया का पूजन करके छठ पर्व मनाया जाता है.